जानिए कालसर्प दोष क्या होता है, कितने प्रकार का होता है तथा कौनसे दोष का किसपर क्या प्रभाव पड़ता है?
- Jyotishacharya Gaurav Singh
- Jul 17, 2020
- 5 min read
जानिए कालसर्प दोष क्या होता है, कितने प्रकार का होता है तथा कौनसे दोष का किसपर क्या प्रभाव पड़ता है?
कालसर्प दोष क्या होता है? जब कभी भी ऐसा संयोग बनता है कि जातक की कुंडली मे बचे हुए 7 ग्रह यदि राहु और केतु के बीच आ जाते हैं तो उसे कालसर्प दोष अथवा कालसाप योग कहा जाता है | यह कोई असमान्य बात नही है, अक्सर मैं देखता हूँ की जातको की कुंडली मे ये दोष उपस्थित रहता है तथा वे इसके कारण अपने जीवन मे काफ़ी दुखी और परेशान रहते हैं | अक्सर ऐसा देखा गया है की उनके बनते-बनते काम बिगड़ जाते हैं |
कालसर्प दोष कितने प्रकार का होता है? राहु तथा केतु मुंडली मे हमेशा आमने सामने वेल भाव मे स्थित होते हैं, वो 2 भाव कुंडली मे कोई से भी हो सकते हैं, इसे आधार मानते हुए पहले भाव से शुरुआत करते हुए क्रम से 12 प्रकार के कालसर्प दोष बताए गये हैं, जो की इस प्रकार से हैं -
1. अनंत कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु प्रथम अथवा लग्न तथा केतु सप्तम भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | इस दोष के होने के कारण जातक को जीवन मे बहुत ज़्यादा संघर्ष करना पड़ता है | 90% मामलो मे जातक परेशान देखे गये हैं, जातक को झूठ बोलने की आदत अधिक होती है जिसके चलते वो किसी का विश्वास पात्र नही बन पता | जातक को झूठे मामलों मे कोर्ट - कचहरी के चक्कर भी काटने पड़ते हैं तथा बहुत बेइज़्ज़ती का सामना करना पड़ता है | 2. कुलिक कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु द्वितीय तथा केतु अष्टम भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | इस दोष के चलते जातक का पुत्र बहुत बीमार रहता है तथा उसका संचित धन उपचार करवाने मे ही समाप्त हो जाता है | जातक को पिता का सुख भी नही मिल पाता | जातक को गुदा तथा जननांग से संबंधित रोग हो सकते हैं |
3. वासुकी कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु तृतीय तथा केतु नवम भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | या तो जातक के छोटे भाई बहन होते ही नही हैं तथा यदि होते हैं तो भी जातक को उनका सुख नही मिल पाता | यह योग जातक को अधिक आलसी बनता है, उसमे अपने कर्म से मुँह मोड़ने की प्रवर्ती होती है, इसी कारण उसे नौकरी तथा व्यवसाय मे हानि उतनी पड़ती है | 4. शंखचूड़ कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु चतुर्थ तथा केतु दशम भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | जातक चाहे जितनी भी मेहनत कर ले परंतु उसे उसके अनुसार फल नही मिलते | या तो जातक के माता-पिता जीवित नही होते अथवा उसे माता-पिता का सुख नही मिल पता | जातक की मानसिक स्थिति ठीक नही रहती, मानसिक तनाव, अवसाद, उदासी बनी रहती है |
5. पद्म कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु पंचम तथा केतु एकादश भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | जातक को संतान सुख या तो नही मिलता अथवा विवाह के बहुत समय बाद मिलता है, तथा जातक की संतान का स्वास्थ भी ठीक नही रहता है | जातक को बुढ़ापे मे बहुत अधिक समस्यायें घेर लेती है | जातक को किसी भी क्षेत्र मे लाभ ना हो पाना इसकी निशानी है |
6. महापद्म कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु षष्ठ तथा केतु द्वादश भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | जातक के खर्चे बहुत अधिक होते हैं, कह सकते हैं आमदनी अठन्नी तथा खर्चा रुपैय्या | जातक हमेशा किसी ना किसी रोग से ग्रसत ही रहता है | नौकरी बहुत मुश्किल से मिलती है तथा सरकारी नौकरी तो कभी नही मिल सकती | ऐसा जातक अपने शत्रु भी बहुत सारे बना लेता है |
7. तक्षक कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु सप्तम तथा केतु प्रथम भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | जातक को या तो पैत्रक संपत्ति मिलती ही नही है तथा यदि मिल भी जाती है तो जल्द ही बर्बाद हो जाती है | जातक की पत्नी झगड़ालु होती है इसलिए पत्नी सुख मे कमी रहती है तथा जातक की अपने ससुराल से संबंध अच्छे नही होते | परंतु अक्सर ये देखा गया है की जातक को दहेज मे अच्छा ख़ासा धन प्राप्त होता है | 8. कर्कोत्तक कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु अष्टम तथा केतु द्वितीय भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | जातक का भाग्योदय बहुत ही मुश्किल से होता है, इसलिए वो अपने जीवनोपरांत दुख भोगता है | जातक की पढ़ाई मे बढ़ा आती है इस कारण उसे नौकरी पाने मे बहुत कठिनाइयो का सामना करना पड़ता है | जातक को पिता का सुख भी कम ही मिलता है |
9. शंखपाल कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु नवम तथा केतु तृतीय भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | जातक कभी भी मंदिर जाना पसंद नही करेगा तथा ना ही ईश्वर को मानेगा | जातक की अपने छोटे भाई-बहनो से नही बनती तथा वो उनसे लड़ता ही रहता है | ऐसे जातक को अक्सर अपमानित होना पड़ता है | जातक को पुर जीवन धन का अभाव रहता है | 10. घातक कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु दशम तथा केतु चतुर्थ भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | जातक को कभी भी प्रतिष्ठा नही मिल पति, नौकरी तथा व्यवसाय मे भी अपमान का सामना करना पड़ता है | जातक के माता-पिया या तो होते ही नही है अथवा होते भी हैं तो उनका सुख नही मिल पता | जातक के पराक्रम मे बहुत कमी रहती है |
11. विषधर कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु एकादश तथा केतु पंचम भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | ऐसे जातक को बीमारी कभी नही छोड़ती, जिससे की वो असाहय हो जाता है | जातक के पुत्र अच्छे नही निकलेंगे अथवा उनका चरित्र अच्छा नही रहेगा | नौकरी अथवा लाभ मे हमेशा हानि होगी चाहे वो कुछ भी करे लाभ नही हो पाएगा | 12. शेषनाग कालसर्प दोष - जब कभी भी कुंडली मे राहु द्वादश तथा केतु षष्ठ भाव मे स्थित हो तब ये दोष बनता है | जातक शत्रुओं से बहुत अधिक पीड़ित रहता है, इसी वजह से अक्सर कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगता रहेगा | ऐसे जातक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है तथा उसका जीवन पूरी तरह से विवादो से घिरा रहता है |
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bahut khoob...itni deep info pehli baar dekhi