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जानिए क्या होता है वास्तु शास्त्र तथा ये इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

जानिए क्या होता है वास्तु शास्त्र तथा ये इतना महत्वपूर्ण क्यों है ?

वास्तु शास्त्र को यदि परिभाषित करना हो तो ये कहा जा सकता है की ये शिल्प अथवा सरंचना का विज्ञान है | वास्तु शास्त्र के विभिन्न पहलु हैं जैसे कि किसी इमारत की योजनाबद्ध तरीके से रूपरेखा बनाना, उसका सही नापतोल करना, नक्शा बनाना, इत्यादि | वास्तु शास्त्र का मुख्य उद्देश्य किसी भी स्थान विशेष को मनुष्य के रहने लायक बनाना ताकि वो कम से कम समस्याओं का सामना करते हुए सुख की भरपूर अनुभूति कर सके | वास्तु शास्त्र के सिद्धांत किसी नए बनते हुए भवन को वास्तु के अनुसार ठीक बनाने तथा किसी बने बनाये भवन को वास्तु के अनुसार रूपांतरित करने में सहयोग करते हैं |

वास्तु शास्त्र ना सिर्फ दिशाओं से सम्बंधित ज्ञान को उजागर करता है अपितु वह मुख्य द्वार के बारे में भी विवेचनात्मक रूप से बता सकता है की कौनसा मुख्य द्वार आपके लिए उपयुक्त रहेगा | वास्तु शास्त्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग होता है किसी भी स्थान के पांच तत्वों को संतुलित करना | जिस प्रकार हमारा शरीर पांच तत्वों (अग्नि, वायु, जल, थल, आकाश) से मिलकर बना है तथा मृत्योपरांत पांच तत्वों में ही विलीन हो जाता है उसी प्रकार हमारे निवास स्थान में भी इन्ही पांच तत्वों की प्रधानता होती है जो कि असंतुलित अवस्था में वहां रहने वालो के लिए नित नयी समस्याएं उत्पन्न करते हैं | वास्तु शास्त्र का एक महत्वपूर्ण कार्य उपायों द्वारा इन पांच तत्वों को संतुलित करना भी है |

वास्तु शास्त्र का मुख्य उद्देश्य किसी भी स्थान पर रहने वालों के लिए सुख, शांति, स्वास्थ्य तथा संपत्ति का उचित संतुलन बनाये रखना होता है | वास्तु शास्त्र किसी स्थान कि नकारात्मक ऊर्जा को कम करके सकारात्मक ऊर्जा के प्रस्फुटन का कार्य भी करता है | इसलिए ये कहना अतिश्योक्ति ना होगी कि वास्तु शास्त्र का हमारे जीवन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है और ये बात आज के समय में अधिक से अधिक लोग समझ रहे हैं तथा अपने निवास स्थानों तथा कर्म स्थानों पर वास्तु शास्त्र के सिद्धांतो को स्थापित कर रहे हैं |

वास्तु शास्त्र का इतिहास:

बहुत समय पहले एक बार महादेव तथा एक भयंकर असुर अंधकासुर के बीच घनघोर संग्राम हुआ जो कि करीब ५०० दिनों तक चला | महादेव ने उस असुर को परास्त तो कर दिया जिससे कि उस युद्ध का अंत हुआ परन्तु इस दौरान वो थक गए जिसकी वजह से उन्हें पसीना आ गया तथा उस पसीने कि कुछ बूँदें धरती पर आ गिरी | जिसके फलस्वरूप देखते ही देखते उन बूंदों ने एक असुर का रूप ले लिया जिससे कि देव और दानव सभी भयभीत हो गए | वो असुर कोई और नहीं बल्कि अंधकासुर ही था जो इस प्रकार से उत्पन्न होने के बाद और भी अधिक शक्तिशाली हो गया था |

अंधकासुर फिर से स्वर्ग में उस पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से जा पहुंचा तब ब्रह्माजी ने कहा कि सभी देव और दानव मिलकर इस अंधकासुर को स्वर्ग से धरती लोक पर फेंक दो जिससे इस असुर का विनाश संभव है | उन्होंने कहा कि धरती पर फेंकते समय इसका मुंह नीचे कि तरफ होना चाहिए, बस फिर क्या था देवताओं ने मिलकर अंधकासुर कि एक टांग उठायी तथा दूसरी टांग दानवों ने मिलकर उठायी और उसे नीचे धरती पर फेंक दिया | जिसके फलस्वरूप वो औंधे मुंह धरती पर गिर गया तथा उसने अपने प्राण त्याग दिए | उसका सर उत्तर-पूर्व कि तरफ पड़ा जिसे हम ईशान कोण कहते हैं तथा पैर दक्षिण-पश्चिम कि तरफ पड़े जिसे हम नैत्रत्य कोण कहते हैं | इस असुर का नाम कालांतर में वास्तु पुरुष पड़ा |

प्रिय पाठको, मेरे पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, ये था मेरा ज्योतिष से सम्बंधित एक और विषय पर लेख, यदि आप ज्योतिष के किसी और विषय पर जानकारी पाना चाहते हैं तो कमेंट में लिखकर मुझे बताइये, मैं निश्चित तौर पर उस विषय पर लेख लिखूंगा | यदि आपको मेरे लेख पसंद आ रहे हैं तो कृपया like करके तथा ज्यादा से ज्यादा शेयर करके मेरा उत्साह वर्धन कीजियेगा जिससे कि भविष्य में मैं आपके साथ और अधिक जानकारी साझा कर सकूँ |


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