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शनिदेव की अपने पिता सूर्यदेव से शत्रुता क्यूँ है ?

Shani Surya Shatruta
Astro Guruji Gaurav Singh

ये तो हम सभी भली भाँती जानते हैं की शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव से शत्रुता का भाव रखते हैं। परन्तु शायद आप ये नहीं जानते होंगे की ऐसा क्यूँ है? इसके पीछे कारण क्या है? आज हम यही जानने का प्रयास करेंगे। शनि एक ऐसा नाम है जिसे पढ़ते-सुनते ही लोगों के मन में अजीब सा भय उत्पन्न हो जाता है। ऐसा माना गया है कि शनि की कुदृष्टि जिस पर पड़ जाए वह रातो-रात राजा से भिखारी बन जाता है तथा वहीं दूसरी ओर यदि शनि की कृपादृष्टि हो जाये तो वह भिखारी भी राजा के समान सुख प्राप्त करता है। यदि किसी व्यक्ति ने कोई बुरा कर्म किया है तो वह शनिदेव के प्रकोप से नहीं बच सकता है। शनिदेव जिन्हें आम तौर पर क्रूर ग्रह माना जाता है असल में वे वैसे हैं नहीं, वे तो अत्यधिक न्यायप्रिय हैं जो पापियों को उनके पाप का दंड देते हैं तथा अच्छे कर्म करने वालो को अच्छा फल प्रदान करते हैं।

शनिदेव तथा सूर्यदेव की आपस में नहीं बनती। शनिदेव तथा सूर्यदेव की आपस में में शत्रुता तो ठीक है परन्तु हैरानी की बात यह है कि शनिदेव, सूर्यदेव के ही पुत्र हैं तथा पिता-पुत्र में शत्रुता का संबंध कैसे हो सकता है? पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्यदेव का विवाह ऋषि त्वष्टा की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ था। सूर्यदेव का अत्यधिक तेज उनकी पत्नी संज्ञा से सहन नहीं होता था, परन्तु फिर भी जैसे-तैसे उन्होंनें सूर्यदेव के साथ जीवन व्यतीत करना शुरु किया जिससे की उनके 3 संतान वैवस्त मनु, यम तथा यमुना हुए।

इसके बाद संज्ञा के लिये सूर्यदेव का तेज सहन करना बहुत ही कठिन होने लगा तब उन्हें एक उपाय सूझा। वो अपनी परछाई छाया को सूर्यदेव के पास छोड़ कर चली गई। सूर्यदेव को छाया पर तनिक भी संदेह नहीं हुआ कि वह संज्ञा नहीं है, अब सूर्यदेव और छाया खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगे तथा उनके मिलन से सावर्ण्य मनु, तपती, भद्रा एवं शनि का जन्म हुआ।

जब शनिदेव अपनी माता छाया के गर्भ में थे तब छाया तपस्यारत रहते हुए बहुत व्रत-उपवास करती थीं। कहते हैं कि अत्यधिक उपवास करने के कारण गर्भ में ही शनिदेव का रंग काला पड़ गया था। शनिदेव के श्याम वर्ण को देखकर सूर्यदेव ने अपनी पत्नी छाया पर यह आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नहीं है तथा शनिदेव को अपना पुत्र मानने से मना कर दिया, लाख समझाने के उपरान्त भी वो नहीं माने। स्वयं तथा अपनी माता के अपमान के कारण तभी से शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव से शत्रुता रखते हैं।

बड़े होकर शनिदेव ने अनेक वर्षों तक भूखे-प्यासे रहकर शिवजी भगवान की आराधना की तथा घोर तपस्या से अपनी देह को जला दिया, तब शनिदेव की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने शनिदेव से वरदान मांगने को कहा। शनिदेव ने प्रार्थना की कि युगों-युगों से मेरा तथा मेरी माता छाया का अपमान होता रहा है, पिता सूर्यदेव द्वारा हमें बहुत अपमानित व प्रताड़ित किया गया है इसलिए मेरी माता की इच्छा है कि मैं अपने पिता से भी ज्यादा शक्तिशाली व पूज्य बनूं। तब भोलेनाथ ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ रहेगा। तुम पृथ्वीलोक के न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे। साधारण मानव तो क्या देवता, असुर, सिद्धगण, विद्याधर तथा नाग भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे।

शनिदेव तथा सूर्यदेव के बीच शत्रुता के इस संबंध का ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का व्याख्यान करते समय भी, तथा फलादेश करते समय भी ध्यान रखा जाता है। सूर्यदेव जब मेश राशि में उच्च के होते हैं उस समय शनिदेव का स्थान वहां नीच का होता है तथा जब शनिदेव तुला राशि में उच्च होते हैं उस समय सूर्यदेव वहां नीच के होते हैं। एक समय में एक ही राशि में दोनों का टिकना बहुत कठिन होता है। यदि किसी राशि में दोनों साथ बैठ भी जायें तो परस्पर विरोध होता रहता है।

प्रिय पाठको, मेरे पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। यदि आपको मेरे लेख पसंद आ रहे हैं तो कृपया Like (♡) करके तथा ज्यादा से ज्यादा Share करके मेरा उत्साह वर्धन कीजियेगा जिससे कि मैं भविष्य में आपके साथ और अधिक ज्योतिष सम्बंधित जानकारी साझा कर सकूँ।

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