जानिए नक्षत्र क्या होते हैं? (भाग 2)
- Jyotishacharya Gaurav Singh
- May 29, 2020
- 3 min read
द्वितीय भाग

अभी तक हमने पहले 6 नक्षत्रो के बारे में जाना, अब उसके आगे - [ नक्षत्र प्रथम भाग (Click here) ]
7. पुनर्वसु (20° मिथुन - 3°20' कर्क) - पुनर्वसु नक्षत्र के स्वामी बृहस्पति ग्रह होते हैं तथा ये अदिति (सभी देवी देवताओं की माता) का प्रतिनिधित्व करता है | इनकी शक्ति धन या पदार्थ प्राप्त करने की क्षमता होती है | यह मनुष्य की रचनात्मक का विकास और प्रेरणा का नवीनीकरण करने का कारण बनता है। यह नक्षत्र विशेष रूप से जड़ी-बूटियों और पेड़ों के सापेक्ष रचनात्मक और उपचार की शक्ति प्रदान करता है।
8. पुष्य (3°20' -16°40' कर्क) - पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनि ग्रह होते हैं तथा ये देवगुरु बृहस्पति का प्रतिनिधित्व करता है | इसकी शक्ति आध्यात्मिक ऊर्जा बनाने की क्षमता है | पुष्य नक्षत्र हमारे अच्छे कर्मो और प्रयासों को बढ़ाता है, जिसमें हमारी साधना या योग संज्ञा शामिल है। बृहस्पति वाणी के स्वामी हैं, विशेष रूप से मंत्र और प्रार्थना, और ध्यान सहित सभी प्रकार की पूजा, इसलिए ये संकेत उनके कार्यों के अनुरूप हैं।
जानिए शनिदेव कि साढ़ेसाती मे क्या उपाय करें? - Click here 9. अश्लेषा (16°40' - 30° कर्क) - पुष्य नक्षत्र के स्वामी बुद्ध ग्रह होते हैं तथा ये नागदेवता का प्रतिनिधित्व करता है | इसमें ज़हर (विस्लेसलेशन शक्ति) के साथ सूजन करने की शक्ति है। अश्लेषा नक्षत्र जातक के शत्रु को पंगु बना देता है। यह तब मददगार हो सकता है जब हमारे पास दुश्मन हों | यह विरोधियों, शत्रुओं तथा बाधाओं को नष्ट करने की क्षमता देता है, चाहे वे बाहरी हों या हमारे अपने मानस के भीतर की हो। 10. मघा (0° - 13°20' सिंह) - मघा नक्षत्र के स्वामी केतु ग्रह होते हैं तथा ये पितरो का प्रतिनिधित्व करता है | माघ नक्षत्र किसी स्थिति के परिवर्तन का कारण बनता है जिस प्रकार मृत्यु के बाद नया जीवन होता है। आमतौर पर यह दर्शाता है कि हम एक चक्र के अंत में आ रहे हैं। यह बताता है कि हमें अपने पूर्वजों और पैतृक ऊर्जा का सम्मान करना चाहिए। 11. पूर्व फाल्गुनी (13°20' - 26°40' सिंह) - पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र के स्वामी शुक्र ग्रह होते हैं तथा ये भगा (सुख-समृद्धि के देवता) का प्रतिनिधित्व करता है | यह नक्षत्र प्रजनन शक्ति प्रदान करने वाला है | इसके आधार पुरुष और नारी हैं | यह उत्पादन क्षमता को नियंत्रित करता है तथा विवाहोत्सव की व्यवस्था भी करता है। 12. उत्तर फाल्गुनी (26°40' सिंह - 10° कन्या) - उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र के स्वामी सूर्य ग्रह होते हैं तथा ये आर्यमान (सरंक्षण तथा सहायता के देवता) का प्रतिनिधित्व करता है | उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र समृद्धि लाता है जो कि सरंक्षण तथा सहायता के माध्यम से होती है। यह संसाधनों के आयोजन के लिए सरंक्षण तथा सहायता कि ज़रूरत को दर्शाता है।
वैदिक ज्योतिष पद्धति से कुंडली कैसे देखें ? - Click here 13. हस्त (10° - 23°20' कन्या) - हस्त नक्षत्र के स्वामी चंद्र ग्रह होते हैं तथा ये सविति (सूर्य देव के रचनात्मक, प्रेरणादायक और परिवर्तनकारी रूप) का प्रतिनिधित्व करता है | इसकी शक्ति वह है जो हम प्राप्त करना चाहते हैं और इसे अपने हाथों में रखना चाहते हैं | इसका आधार लाभ की तलाश तथा उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया है। हस्त नक्षत्र पूर्ण और तत्काल रूप से हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता देता है। 14. चित्रा (23°20' कन्या - 6°40' तुला) - चित्रा नक्षत्र के स्वामी मंगल ग्रह होते हैं तथा ये विश्वकर्मा अथवा तवस्त्र का प्रतिनिधित्व करता है | इसकी शक्ति जीवन में योग्यता संचय करने की क्षमता है। इसका आधार कानून तथा सत्य है। इस नक्षत्र के माध्यम से जातक अपने काम में सम्मान हासिल करने में सक्षम होता है। चित्रा नक्षत्र हमें अपने अच्छे कर्म का फल प्राप्त करने की अनुमति देता है जो धार्मिकता के माध्यम से आता है।
15. स्वाति (6°40' - 20° तुला) - स्वाति नक्षत्र के स्वामी राहु ग्रह होते हैं तथा ये वायु देव का प्रतिनिधित्व करता है | यह नक्षत्र हवा की तरह बिखरने की शक्ति देता है तथा इसका आधार विभिन्न दिशाओं में घूमन तथा परिवर्तन है। यह विनाशकारी हो सकता है जब तक हम यह नहीं समझ जाते कि नकारात्मकता को दूर करने के लिए इसका उपयोग कैसे किया जाए।
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To be continued..
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Great knowledge sharing Pandit ji