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जानिए नक्षत्र क्या होते हैं? (भाग 3)

तृतीय भाग


nakshatras

अभी तक हमने पहले 15 नक्षत्रो के बारे में जाना, अब उसके आगे - [ नक्षत्र प्रथम भाग (Click here) ]


16. विशाखा (20° तुला - 3°20' वृश्चिक) - विशाखा नक्षत्र के स्वामी बृहस्पति ग्रह होते हैं तथा ये इन्द्र तथा अग्निदेव का प्रतिनिधित्व करता है | इनका आधार वातावरण में गर्मी और बिजली की शक्तियों को प्रदान करना है | ये हमें मेहनत से की गयी फसल का फल देते हैं। यह तात्कालिक परिणाम भले ही ना दे परन्तु ये अधिक दीर्घकालिक लाभ अवश्य देते हैं।


17. अनुराधा (3°20' - 16°40' वृश्चिक) - अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि ग्रह होते हैं तथा ये मित्र देव का प्रतिनिधित्व करता है | इसका आधार उदगम तथा अवरोह है जिससे की सम्मान और प्रचुरता प्राप्त होती है। अनुराधा नक्षत्र रिश्तो में संतुलन प्रदान करता है जिसके माध्यम से जातक प्रसिद्धि और मान्यता प्राप्त करते हैं।


18. ज्येष्ठा (16°40' - 30° वृश्चिक) - ज्येष्ठा नक्षत्र के स्वामी बुद्ध ग्रह होते हैं तथा ये इन्द्र देव का प्रतिनिधित्व करता है | यह युद्ध (आरोहण शक्ति) में साहस को बढ़ाने, जीतने तथा पाने की शक्ति है। इसका आधार आक्रमण तथा रक्षा है। इन्हीं का नतीजा है कि जातक एक नायक बन जाता है। ज्येष्ठा नक्षत्र हमें अपनी व्यक्तिगत शक्तियों के शिखर तक पहुंचने की अनुमति देता है, लेकिन इसके लिए बहुत साहस तथा प्रयास की आवश्यकता होती है।


नक्षत्र द्वितीय भाग (Click here) 19. मूल (0° - 13°20' धनु) - मूल नक्षत्र के स्वामी केतु ग्रह होते हैं तथा ये निरर्ति (विनाश की देवी) का प्रतिनिधित्व करता है | इसमें बर्बाद करने या नष्ट करने की शक्ति होती है। इसका आधार चीजों को अलग करना तथा चीजों को कुचलना होता है। इनके माध्यम से विनाश को नष्ट करने की शक्ति प्राप्त होती है। कष्टों को दूर करने में मूल नक्षत्र हमें उनकी जड़ को नष्ट करने की अनुमति देता है, जब तक कि वे हमसे दूर नहीं हो जाते। 20. पूर्व आषाढ़ (13°20' - 26°40' धनु) - पूर्व आषाढ़ नक्षत्र के स्वामी शुक्र ग्रह होते हैं तथा ये अपाह (जल के देवता) का प्रतिनिधित्व करता है | इसकी शक्ति तामसिकता (वर्चोग्रहण शक्ति) है। इसका आधार ताकत तथा जुड़ाव है जिसके माध्यम से जातक की चमक बढ़ती है। पूर्व आषाढ़ शुद्धि और उत्थान लाता है, जैसे पानी में स्नान करने से प्राप्त ऊर्जा। यह हमारे प्रयासों के लिए हमें अतिरिक्त शक्ति प्रदान करता है। 21. उत्तर आषाढ़ (26°40' धनु - 10° मकर) - उत्तर आषाढ़ नक्षत्र के स्वामी सूर्य ग्रह होते हैं तथा ये विश्वेदेवा (सार्वभौम देवता) का प्रतिनिधित्व करता है | इस नक्षत्र की शक्ति एक अजेय जीत प्रदान करना है। इसका आधार जीतने की ताकत तथा लक्ष्य होता है कि जिसे जातक जीत सकता है। उत्तर आषाढ़ उस परम विजय को देता है जिसे कभी छीना नहीं जा सकता। यह जातक को उच्चतम लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करता है। 22. श्रावण (10° - 23°20' मकर) - श्रावण नक्षत्र के स्वामी चंद्र ग्रह होते हैं तथा ये भगवन विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है | श्रावण जातक को उसके जीवन से जुड़े लोगों में उनके उपयुक्त पथों से जोड़कर एक साथ जोड़ने में सक्षम बनाता है। इसके लिए ग्रहणशीलता तथा सुनने की आवश्यकता होती है, इसके परिणामस्वरूप समझ और आकांक्षा होती है। यहाँ ज्ञान, शिक्षण तथा संचार के महत्व को इंगित किया गया है, जिसके बिना हमारे प्रयास सफल नहीं हो सकते।


वैदिक ज्योतिष पद्धति से कुंडली कैसे देखें ? - Click here 23. धनिष्ठा/श्रविष्ठा (23°20' मकर - 6°40' कुम्भ) - धनिष्ठा/श्रविष्ठा नक्षत्र के स्वामी मंगल ग्रह होते हैं तथा ये आठ वासुओं (बहुतायत के देवताों) का प्रतिनिधित्व करता है | इसकी शक्ति बहुतायत और ख्याति देना है। इसका आधार जन्म तथा समृद्धि है। ये मनुष्यों को एक साथ लाने की शक्ति देता है। धनिष्ठा/श्रविष्ठा हमें अपने दोस्तों और साथियों के लिए ध्यान का केंद्र बनने की अनुमति देता है। 24. शतभिषा (6°40' - 20° कुम्भ) - शतभिषा नक्षत्र के स्वामी राहु ग्रह होते हैं तथा ये वरुण देव (ब्रह्मांडीय जल के देवता) का प्रतिनिधित्व करता है | शतभिषा नक्षत्र सौ औषधियों को धारण करने को दर्शाता है। इसका आधार विस्तार अथवा व्यापकता तथा सभी का समर्थन है। ये दुनिया को विपत्ति से मुक्त बनाता है। वरुण पाप, ऋण, चोट और बीमारी के देवता हैं, जो न केवल इन आपदाओं को हमारे ऊपर ला सकते हैं, बल्कि यदि हम उन्हें ईमानदारी से प्रसन्न करते हैं, तो उन्हें हम से दूर भी कर सकते हैं।


25. पूर्व भाद्रपद (20° कुम्भ - 3°20' मीन) - पूर्व भाद्रपद नक्षत्र के स्वामी गुरु ग्रह होते हैं तथा ये आजिकापदा (एक प्राचीन अग्नि ड्रैगन) का प्रतिनिधित्व करता है | यह एक आध्यात्मिक जातक को जीवन में ऊपर उठाने के लिए आग देता है। इसका आधार सभी का भला तथा देवताओं के लिए अच्छा है। ये पूरी दुनिया का समर्थन करता है। यह नक्षत्र आंतरिक शुद्धि के माध्यम से सार्वभौमिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।


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26. उत्तर भाद्रपद (3°20' - 16°40' मीन) - उत्तर भाद्रपद नक्षत्र के स्वामी शनि ग्रह होते हैं तथा ये अहीर बुधन्य (गहराइयों के सर्प देवता) का प्रतिनिधित्व करता है | इसकी शक्ति वर्षा लाना है तथा इसका आधार बारिश वाले बादल तथा पौधों के बढ़ाना है। इससे तीनों जगत् अपनी स्थिरता प्राप्त करते हैं। यह नक्षत्र व्यापक रूप से विकास और समृद्धि देता है, जिससे पूरी दुनिया को फायदा होता है।


27. रेवती (16°40' - 30° मीन) - रेवती नक्षत्र के स्वामी बुद्ध ग्रह होते हैं तथा ये पूषन (सूर्य देव के पौष्टिक रूप) का प्रतिनिधित्व करता है | इसकी शक्ति देखने की शक्ति है तथा इसका आधार गाय तथा बछड़े हैं जिससे ये पूरी दुनिया का पोषण करते हैं। रेवती नक्षत्र उचित पोषण प्रदान करके प्रचुरता पैदा करता है। यह सभी लोगों को उनके प्रयासों में मदद करता है। पूषन मवेशियों का स्वामी है और रास्तों का स्वामी है। वह अपने आंदोलन में झुंड का नेतृत्व करता है, बचाता है और इकट्ठा करता है |

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1 comentário


Surender Rawat
Surender Rawat
25 de jul. de 2020

Great knowledge sharing Pandit ji

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